परम् वीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन मनोज पांडेय की नव निर्मित 6 फिट की प्रतिमा का हुआ अनावरण।
न्यूज़ एसीबी 7- सीतापुर (कमलापुर)। सीतापुर के रुढा गांव पहुंचे सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे। कमलापुर चीनी मिल के ग्राउंड पर उतरा सेना प्रमुख का हेलीकॉप्टर । रुढा में परम् वीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन मनोज पांडेय की नव निर्मित 6 फिट की प्रतिमा का किया अनावरण। अनावरण के बाद आर्मी के बैंड की धुन पर शहीद की प्रतिमा को दी सलामी। गांव के आस पास 1 किलोमीटर में सेना ने बनाया सुरक्षा घेरा, कारगिल जंग में खालू बार फतेह करने के दौरान कैप्टन मनोज पांडेय ने दी थी सहादत। रुढा गांव में उनकी जन्मस्थली पर सेना ने बनवाया है स्मारक। कार्यक्रम के दौरान सेना प्रमुख शहीद के पिता गोपीचंद्र पांडे को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया l कसमंडा स्टेट के कुँवर दिनकर प्रताप सिंह ने भी शहीद की प्रतिमा को नमन किया, फिर सेना प्रमुख से मुलाक़ात की l आपको बताते चले कि कैप्टन मनोज पांडेय जो की भारतीय सेना के अधिकारी थे जिन्हें सन 1999 के कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
धन्य है सीतापुर जनपद की यह पवित्र धरती जिस पर कैप्टन मनोज पाण्डेय जैसे शूरवीर अमर बलिदानी अवतरित हुए। आपके देश प्रेम व समर्पण को न्यूज़ एसीबी 7 का शत शत नमन।
प्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के रूढ़ा गाँव में हुआ था। मनोज नेपाली क्षेत्री परिवार में पिता गोपीचन्द्र पांडेय तथा माँ मोहिनी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। मनोज की शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई और वहीं से उनमें अनुशासन भाव तथा देश प्रेम की भावना संचारित हुई जो उन्हें सम्मान के उत्कर्ष तक ले गई। इन्हें बचपन से ही वीरता तथा सद्चरित्र की कहानियाँ उनकी माँ सुनाया करती थीं और मनोज का हौसला बढ़ाती थीं कि वह हमेशा जीवन के किसी भी मोड़ पर चुनौतियों से घबराये नहीं और हमेशा सम्मान तथा यश की परवाह करे। इंटरमेडियेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोज ने प्रतियोगिता में सफल होने के पश्चात पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया। प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात वे 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने। जिन्हें कारगिल युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। सारा देश उनकी बहादुरी को प्रणाम करता है।
ऑपरेशन विजय वीरगति
पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के कठिन मोर्चों में एक मोर्चा खालूबार का था जिसको फ़तह करने के लिए कमर कस कर उन्होने अपनी 1/11 गोरखा राइफल्स की अगुवाई करते हुए दुश्मन से जूझ गए और जीत कर ही माने। हालांकि, इन कोशिशों में उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। वे 24 वर्ष की उम्र जी देश को अपनी वीरता और हिम्मत का उदाहरण दे गए।